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म्यूचुअल फंडों में कैसे करें निवेश?

Solutions for Life (जीवन संजीवनी)
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प्रिय पाठकों पूर्व में मैंने एक लेख करोडपति बने…. प्रस्तुत किया था…. उक्त लेख पर अनेक पाठकों द्वारा निवेश से सम्बंधित प्रश्न पूछे गए थे जिनका उत्तर प्रतिक्रियाओं के माध्यम से देना संभव नहीं था इस हेतु म्युचुअल फंडों में निवेश से सम्बंधित यह लेख प्रस्तुत कर रहा हूँ … आशा है जिज्ञासु पाठकों को इस लेख से लाभ प्राप्त होगा….

दोस्तों जैसा की पिछले पोस्ट में अनेक पाठकों द्वारा यह कहा गया था कि आपके पास पैसा निवेश करने के लिए जरूरी जानकारी, समय या कौशल नहीं है, तो आपके लिए म्यूचुअल फंड में निवेश करना सबसे अच्छा विकल्प है. म्यूचुअल फंड में निवेश करने से आपको पेशेवर निवेश सलाहकारों सेवाओं के साथ आपको अपने पैसा पर ज्यादा से ज्यादा रिटर्न का फायदा मिलेगा.  लेकिन म्यूचुअल फंड में निवेश करने के लिए आपके पास कुछ बुनियादी जानकारी होना है, जिससे आपको ज्यादा से ज्यादा मुनाफा मिल पाए.

म्यूचुअल फंड में निवेश फायदेमंद?
म्यूचुअल फंड में निवेश से आप पेशेवर निवेश सलाहकार की सेवाओं का फायदा पा सकते हैं. सब लोगों के पास पेशेवर निवेश सलाहकारों जैसा कौशल नहीं होता है. साथ ही, म्यूचुअल फंड के प्रदर्शन और विश्वसनियता की जानकारी पाना आसान होता है. परिस्थितिओं के साथ निवेश की रणनीति में बदलाव करना जरूरी है. बैश्विक अर्थव्यवस्था, ब्याज दरें, मुद्रा में उतार-चढ़ाव, जैसे कई पहलुओं को ध्यान में रखकर पोर्टफोलिओ में फेर-बदल करने पड़ते हैं, जो पेशेवरों के लिए ही संभव है. म्यूचुअल फंड निवेश से जुड़े जोखिम को कम करते हैं. म्यूचुअल फंड निवेश का एक ही विकल्प का इस्तेमाल नहीं करते हैं. बेहतर रिटर्न के साथ साथ कम जोखिम का फायदा म्यूचुअल फंड में निवेश करके मिलता है.

कैसे करें म्यूचुअल फंड का चुनाव
म्यूचुअल फंड चुनते वक्त इन बातों पर ध्यान देना जरूरी है- आपको कितना रिटर्न चाहिए और कितना जोखिम उठा सकते हैं, म्यूचुअल फंड चुनते हुए ध्यान में इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए. अलग-अलग म्यूचुअल फंड में अलग-अलग रिटर्न-जोखिम का मेल होता है. जो आपके पैमाने पर सही उतरे, उसी म्यूचुअल फंड को चुनिए. पिछले रिटर्न से आप म्यूचुअल फंड के प्रदर्शन के बार में जान सकते हैं. चुनाव करने से पहले अलग अलग अवधियों में  म्यूचुअल फंडों की प्रदर्शनी की सूची बनाएं. उसके बाद ही म्यूचुअल फंड चुने. किसी भी एक म्यूचुअल फंड में निवेश न करें. दो या तीन म्यूचुअल फंडों में निवेश करने से आपको ज्यादा मुनाफा मिल पाएगा.

निवेश के बाद नजर रखें और समीक्षा करें
निवेश करने के बाद म्यूचुअल फंड के प्रदर्शन पर नजर रखना बहुत जरूरी है. इससे आपको पता चल सकेगा कि म्यूचुअल फंड आपकी उम्मीदों के मुताबिक रिटर्न दे रहा है कि नहीं. म्यूचुअल फंड का प्रदर्शन के मुताबिक फैसला करना चाहिए कि आप निवेश कायम रखना चाहते हैं या बेचना.

सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (सिप) इस समय म्यूचुअल फंड में निवेश का सबसे लोकप्रिय तरीका बन गया है जिसमें नियमित अंतराल पर रकम निवेश की जाती है. लेकिन इनके सिस्टमैटिक विदड्रॉअल प्लान (एसडब्ल्यूपी या स्विप) भी हैं जिनसे निवेशक नियमित अंतराल पर कुछ पैसा अपने निवेश में से निकाल सकते हैं. निकाला गया पैसा किसी ओर योजना में निवेश किया जा सकता है या फिर कुछ ओर खर्चों के लिए इसका उपयोग कर सकते हैं. अमूमन स्विप को सेवानिवृत्ति के बाद होने वाले नियमित खर्चों को पूरा करने के लिए अच्छे से उपयोग किया जा सकता है.

स्विप

स्विप से नियमित अंतराल के बाद कुछ नियत राशि निकाली जा सकती है. यह निकासी मासिक, तिमाही, छमाही या वार्षिक स्तर पर कर सकते हैं. इस योजना में समय अंतराल निवेशक को अपनी जरूरत और प्रतिबद्धताओं के अनुसार चुनना चाहिए. स्विप के कई लाभ हैं.  यह आपके निवेश से एक नियमित समय अंतराल के बाद आपको आपकी चाही गई रकम तो देते ही हैं, साथ में आपकी मूल रकम सीधे बाजार में निवेश रहती है, तो निवेश पर वापसी बहुत अच्छी होने की उम्मीद होती है. आपका मूल निवेश मुद्रास्फ़ीति से भी दो-दो हाथ करता रहता है और स्विप आपका भविष्य सुरक्षित करने में मददगार साबित होता है. स्विप में आप शेयर बाजार के उतार चढ़ाव को भी झेल सकते हैं. नियमित अंतराल के बाद रकम निकासी से औसत मूल्य अच्छा मिलता है और निवेशक बाजार के उतार चढ़ाव का फायदा ले सकता है.

स्विप कैसे काम करती है
जब आप म्यूचुअल फंड खरीदते हैं तो उसे स्विप में ले सकते हैं. इसमें आपको बताना होता है कि कितना रुपया हर महीने/तिमाही में कौन-सी तारीख को चाहिए. जिस दिन म्यूचुअल फ़ंड खरीदा जाता है, उस दिन की एनएवी की दर से आपको आपके निवेश की यूनिटें मिल जाती हैं. फ़िर अगले महीने से आपकी चाही गई रकम उन यूनिटों में से बेचकर आपको दे दी जाती हैं. इससे फ़ायदा यह है कि अगर लंबी अवधि में देखें तो हम बाजार के उतार-चढ़ाव बहुत ज्यादा पाएंगे और ये उनसे लड़ने में सक्षम हैं.

एक व्यक्ति वर्ष 2002 में सेवानिवृत्त हुए. उन्होंने वित्तीय विशेषज्ञ की सेवाएं लीं और अपनी सेवानिवृत्ति राशि का 20 लाख रुपया स्विप में लगाने का निर्णय लिया. उन्होंने 9 जुलाई 2002 को रिलायंस ग्रोथ ग्रोथ म्यूचुअल फ़ंड लिया। 9 जुलाई 2002 की एनएवी 31 रुपए थी और उन्हें 64,133 यूनिट मिलीं.
अब हर माह उन्हें शुरू की दो तारीख को ही 20,000 रुपए मिल जाते थे, और उन्होंने उसे आज तक जारी रखा है, जैसा कि आप सभी ने देखा है कि इन पिछले आठ वर्षों में बाजार ने अपने कई उतार चढ़ाव देखें हैं और कई बने हैं और कई बर्बाद हुए हैं. आज अगर उनके फ़ंड की उन्नति को देखा जाए तो आप पाएंगे कि पिछले आठ वर्षों में उन्होंने स्विप से 19.20 लाख लाख रुपये तो निकाले ही हैं और आज उनके पास 45,577 यूनिट उपलब्ध हैं जिसकी एनएवी 470 रुपए है. और, कुल निवेश की राशि आज हो गई है दो करोड़ से भी ज्यादा. जी हाँ बिल्कुल सही पढ़ा आपने.

कर प्रावधान
अभी तक पहले वर्ष शार्ट टर्म कैपिटल गैन टैक्स देना होता है. जितनी यूनिट आपकी बाजार में बिकी हैं, उस हर यूनिट पर होने वाले फ़ायदे पर और एक वर्ष के बाद लांग टर्म कैपिटल गैन टैक्स से मुक्त है.लेकिन नई कर संहिता में लांग टर्म कैपिटल गैन टैक्स की फ़िर से बहाली की गई है, जिसमें निवेशक को हर यूनिट पर होने वाले फ़ायदे पर अब एक वर्ष की अवधि के बाद भी कर देना होगा और इंडेक्सेशन के ऊपर भी कर देय होगा. लेकिन इतना कर देने के बाबजूद भी यह योजना बहुत ही अच्छी है, जोखिमपूर्ण भी है. पर इसके रिटर्न की तुलना किसी और वित्तीय उत्पाद से करना बहुत ही मुश्किल है.

वित्तीय विशेषज्ञ की सेवाएं
जब आप बाजार आधारित कोई भी उत्पाद खरीदते हैं, और अगर खुद विशेषज्ञ नहीं हैं तो वित्तीय विशेषज्ञ की समय समय पर सेवाएं जरुर लें जो आपके धन को सुरक्षित रखने में आपकी मदद करेगा. अगर थोड़ा-सा शुल्क देकर आपको अपने निवेश से ज्यादा बेहतर वापसी मिल रही है तो हर्ज ही क्या है.
अगर आप इन सब बातों का ध्यान रखतें हैं, तो म्यूचुअल फंड में निवेश करके आप अपने पैसे में इजाफा होते देख सकेंगे.

आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल
पिछले एक दशक में इसने निवेश को फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (एफएमपी) तक ही सीमित नहीं रखा है. इक्विटी में फैलाव भी बेहतर रहा है और ये अपने फिक्स्ड इनकम बिजनेस के लिए भी जाना जाता है.  इसकी गिल्ट ऑफरिंग वाकई शानदार थी. मध्यम डेट कैटेगरी में इसके प्रमुख प्लान आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल इनकम प्लान और आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल लांग टर्म रेगुलर है. हालांकि पिछले वर्ष इनका प्रदर्शन ज्यादा बढ़िया नहीं रहा था और इस कैटेगरी में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया था. इसके लिक्विड फंड की 30 प्रतिशत परिसंपत्ति ऐसे इंस्ट्रुमेंट में लगाते हैं जिनमें तरलता ज्यादा होती है. आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल इंफ्रास्ट्रक्चर और आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल डायनेमिक इसके सबसे बेहतर ऑफर हैं. आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल ऐसी कैटेगरी है जिसने पहले उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन नहीं किया था, लेकिन मौजूदा दौर में अच्छा प्रदर्शन कर रही है. डिट्टो आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल की सबसे बड़ी खोज थी जो कि जिसके प्रदर्शन ने इस वर्ष काफी प्रभावित किया.

बिरला सन लाइफ म्यूचुअल फंड
बाजार में एक दशक से मौजूद होने का असर इस फंड के व्यवसाय पर हुआ नहीं दिखता. ये असेट मैनेजमेंट कंपनी अब तेजी से बढ़ते खिलाड़ियों के रूप में दिख रही है. अब फंड अपनी पहुंच बढ़ाने और ब्रांड बिल्डिंग करने में लगा है. पिछले 12 महीनों में इक्विटी के लिहाज से इसने बेहतर काम किया है. एक वर्ष पहले बिरला सन लाइफ म्यूचुअल फंड को फाइव स्टार और फोर स्टार रेटिंग मिली जिसमें से सिर्फ एक इक्विटी का ऑफर कर रहा था. इस दौरान उनकी सूची में पांच इक्विटी फंड और दो हाइब्रिड फंड (मंथली इनकम प्लान और इक्विटी ओरिएंटेड बैलेंस्ड) थे.

एचडीएफसी म्यूचुअल फंड
फंड इंडस्ट्री का सबसे दमदार म्यूचुअल फंड. ऐतिहासिक तौर पर इस फंड का प्रदर्शन हमेशा उम्मीद से बढ़िया रहा है. वास्तव में 2008 इसकी चार स्कीम – एचडीएफसी, इक्विटी, एचडीएफसी ग्रोथ, एचडीएफसी 2000 और एचडीएफसी टैक्ससेवर ने कैटेगरी के औसत से कम प्रदर्शन किया. इस वर्ष उन्होंने अपनी मेरिट के अनुरूप प्रदर्शन किया. इस असेट मैनेजमेंट कंपनी ने पिछले सालों में बेहतर बढ़ोतरी दर्शाई है.

रिलायंस म्यूचुअल फंड
इस फंड का इतिहास रहा है कि इसने हमेशा बड़ी पूंजी को आकर्षित किया है. चुस्त वितरण, मार्केटिंग और ब्रांड मैनेजमेंट की वजह से इसमें बड़ी मात्र में पूंजी निवेश किया गया है. पहले के दो इक्विटी फंड रिलायंस विजन और रिलायंस ग्रोथ की वजह से ये लोगों की नजर में 2002 और 2003 में आई थी. रिलायंस ब्रांड होने के साथ इसकी परफॉर्मेस ने लोगों को आकर्षित किया. 2006 में ये भारत का सबसे बड़ा बनकर उभरा और अगले साल में ये फंड सबसे बड़ा हो गया. 2700 करोड़ रुपए कमाकर न्यू फंड ऑफरिंग (एनएफओ) इतिहास बनाया. हालांकि कुछ स्कीमें अन्य के मुकाबले बेहतर थीं.

यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया म्यूचुअल फंड
यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया दो फंड्स में बंट गई थी. पहला यूटीआई म्यूचुअल फंड और यूटीआई की स्पेशल अंडरटेकिंग.  इसके सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले फंड यूटीआई इंफ्रास्ट्रक्चर, यूटीआई अपॉरच्यूनिटीज और यूटीआई डिवीडेंट यील्ड थे. ट्रांसपोर्टेशन और लॉजिस्टिक फंड जो पहले आटो सेक्टर के फंड थे, ने इस वर्ष काबिले-तारीफ प्रदर्शन किया. फिक्स्ड इनकम फंड में सबसे बेहतर परफॉर्मेस यूटीआई मनी मार्केट म्यूचुअल फंड और यूटीआई फ्लोटिंग रेट एसटी रेगुलर ने की. यूटीआई म्यूचुअल फंड का आधार बड़ा है और इसका डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क भी काफी वृहद है.

म्यूचुअल फंड में इनवेस्ट करना है तो ऑफर डॉक्युमेंट (ओडी) पढ़े बिना अंतिम फैसला लेना ठीक नहीं रहेगा. ओडी ही वह दस्तावेज है, जिसे पढ़कर स्कीम के बारे में सही जानकारी मिल सकती है और उसकी परफॉरमेंस का भी अंदाज लगाया जा सकता है. अब सवाल उठता है कि सौ-सवा सौ पन्नों के ओडी में से बतौर इनवेस्टर्स आपके काम की कौन सी बातें हैं?

ऑफर डॉक्युमेंट
प्रत्येक फंड हाउस जब कोई नई स्कीम लॉन्च करता है, तो इससे जुड़े तमाम नियमों, शर्त और दूसरी बातों की जानकारी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) को देता है. यह जानकारी जिस दस्तावेज के जरिए सेबी को दी जाती है, उसे स्कीम का ऑफर डॉक्युमेंट कहते हैं. इसमें इनवेस्टमेंट का मकसद, रिस्क फैक्टर, लोड व दूसरे खर्च आदि से जुड़ी तमाम जानकारियां दी गई होती हैं.स्कीम का नाम काफी लुभावना हो सकता है. लेकिन आप नाम पर न जाते हुए इनवेस्टमेंट के मकसद पर जाइए . कई स्कीम के नाम में शब्द लगाकर उन्हें आकर्षक बनाया जाता है. आमतौर पर निवेशक इन शब्दों से यह अर्थ लगाते हैं कि यह स्कीम उनकी इनवेस्टमेंट की गई रकम को बढ़ाने वाली है. पर इस बारे में ज्यादा ठोस संकेत इनवेस्टमेंट ऑब्जेक्टिव्स के बारे में जानकर ही मिल सकते हैं, नाम से नहीं
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि फंड हाउस ऐसेट अलोकेशन किस तरह करने जा रहा है. अगर किसी स्कीम के तहत 65 फीसदी से ज्यादा रकम इक्विटी में लगाई जाने वाली है तो ऐसी स्कीम को इक्विटी स्कीम कहते हैं. अगर कंपनी इक्विटी व डेट में बराबर-बराबर रकम इनवेस्ट करने जा रही है, तो ऐसी स्कीम बैलेंस्ड स्कीम के रूप में जानी जाती है. बैलेंस्ड स्कीम की तुलना में इक्विटी स्कीम में ज्यादा जोखिम होता है.
यह जान लीजिए कि स्कीम किस तरह की है – ओपन एंडेड स्कीम में कभी भी एंट्री ली जा सकती है और कभी भी उससे बाहर निकला जा सकता है. जबकि क्लोज एंडेड स्कीम में सब्सक्रिप्शन एक ही बार लिया जा सकता है और रीडेंपशन भी न्यूनतम तय समय सीमा के अंतराल पर ही हो सकता है. इस तरह क्लोज एंडेड स्कीम की लिक्विडिटी कम हो जाती है. कुछ ओपन एंडेड स्कीम ऐसी होती है, जिनमें एक लॉक इन पीरियड होता है. यानी इस पीरियड के भीतर रीडेंपशन नहीं हो सकता. चूंकि लिक्विडिटी, यानी रीडेंपशन की आजादी, किसी भी इनवेस्टर के लिए अहमियत रखती है, लिहाजा इनवेस्टमेंट से पहले इस बारे में निश्चिंत हो जाना चाहिए.

एक्सपेंस
किसी म्यूचुअल फंड स्कीम में इनवेस्टमेंट की लागत क्या आने वाली है, इसका सही-सही पता होना जरूरी है, क्योंकि इसका सीधा असर रिटर्न पर पड़ता है. म्यूचुअल फंड ऑपरेट करने में अडवाइजरी, कस्टोडियल, ऑडिट ट्रांसफर एजेंट व ट्रस्टी फीस और एजेंट कमिशन आदि कई मद में खर्च करने पड़ते हैं, ऑफर डॉक्युमेंट में इन मदों में किए जाने वाले खर्च के बारे में जानकारी दी गई होती है. इसके अलावा, इसमें यह भी बताया गया होता है कि स्कीम में पैसा लगाने पर इनवेस्टर्स को कौन-कौन से चार्जेज देने होंगे. मसलन- एंट्री लोड, एग्जिट लोड, स्विचिंग चाजेर्ज, रेकरिंग एक्सपेंस वगैरह. आपके लिए वैसी स्कीम फायदेमंद रहेगी, जिस पर खर्चे कम आते हों. खर्चे कम होंगे तो फंड हाउस के पास इनवेस्टमेंट के लिए रकम ज्यादा होगी. इनवेस्टमेंट के लिए रकम ज्यादा होगी, तो रिटर्न भी ज्यादा मिलने की उम्मीद बनेगी.

टैक्स
अलग-अलग स्कीम पर टैक्स से जुड़ी अलग-अलग रियायतें दी जाती हैं। आमतौर पर इक्विटी आधारित स्कीमों में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स से छूट के रूप में आपको बड़ी रियायत मिलती है. बैलेंस्ड व डेट आदि दूसरी स्कीमों में कैपिटल गेन पर अलग-अलग दर से टैक्स लगाया जाता है। इस तरह इन स्कीमों में मिलने साली टैक्स संबंधी रियायत कम हो जाती है. आप अपनी टैक्स संबंधी ठोस प्लानिंग के लिए यह अच्छी तरह जान लें कि आप जिस स्कीम में इनवेस्टमेंट करने जा रहे हैं, उस स्कीम में टैक्स संबंधी क्या और कितनी रियायत मिलने वाली है. यह इसलिए भी जरूरी है, लिहाजा ऑफर डॉक्युमेंट में ‘टैक्स इन्फर्मेशन’ वाला सेक्शन ध्यान से पढ़ना चाहिए.

ट्रैक रेकॉर्ड
ऑफर डॉक्युमेंट में फंड हाउस शुरू से ही अपनी परफॉरमेंस के बारे में पूरी जानकारी देता है. इसमें यह अंतराल पर दिए गए रिटर्न, नेट ऐसेट वैल्यू (एनएवी) आदि के बारे में जानकारी दी गई होती है. आपको शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म, दोनों ही तरह की पिछली स्कीम की परफॉरमेंस पर नजर डालनी चाहिए. इन आंकड़ों पर नजर डालकर आपको फंड का ट्रैक रेकॉर्ड पता चल जाता है

विभिन्न म्युचुअल फंडों के पिछले रिटर्न का विवरण

Fund3 Yr Return1 Yr Return
IDFC Premier Equity Pl…24.2453.61
ING Dividend Yield24.0647.13
Birla Sun Life Dividen…23.5143.52
ICICI Prudential Discovery Inst I23.2242.41
Reliance Regular Savin…21.8332.37
ICICI Prudential Discovery21.6940.81
UTI Dividend Yield21.0136.78
Reliance Regular Savings Balanced20.7233.28
Quantum Long Term Equity20.0140.35
HDFC Top 20019.7032.29
HDFC Equity19.5742.79
HDFC Balanced18.7738.02
HDFC Prudence18.7438.97
DSPBR Small and Mid Cap Reg17.6253.95
Reliance Equity Opport…17.5853.59
DSPBR Equity16.9435.22
Reliance Growth Inst16.7831.97
Fortis Dividend Yield16.6437.77
Sundaram BNP Paribas S…16.5239.97
Tata Contra14.8232.33

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