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जागरण जंक्शन के मंच पर साहित्य को मरने मत दो -एक अनुरोध

Solutions for Life (जीवन संजीवनी)
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नमस्कार दोस्तों… जागरण जंक्शन के मंच पर वैलेंटाइन कांटेस्ट अब समाप्त हो चूका है… प्रेम विषय पर संपन्न हुए इस कांटेस्ट पर अनेक लेखकों द्वारा बहुत ही उम्दा रचनाएं पोस्ट की गयी… जिन्होंने… प्रेम के अनेक पहलुओं को उजागर किया… इस कांटेस्ट ने प्रेम को गहनता से जानने का अवसर प्रदान किया… न केवल हमें अनेक प्रेरक पोस्ट पढने को मिले अपितु स्वयं भी प्रेम के इस महत्वपूर्ण विषय के बारे में गहनता से चिंतन मनन का अवसर भी जागरण जंक्शन द्वारा इस प्रतियोगिता को आयोजित करके उपलब्ध हुआ… इस हेतु जागरण जंक्शन का यह मंच साधुवाद का पात्र है… और इस हेतु मै एक बार फिर से जागरण जंक्शन को बधाई देता हूँ.

लेकिन दोस्तों इसी प्रतियोगिता के दौरान कुछ ऐसी रचनाएं भी देखने को मिली हैं जिस वजह से मुझे आज यह पोस्ट लिखने को मजबूर होना पड़ा है… मै उन रचनाओं का सार्वजानिक रूप से नाम तो नहीं लूँगा… लेकिन ये रचनाएं कुछ नवोदित तो कुछ इस मंच के प्रतिष्ठित लेखकों द्वारा पोस्ट की गयी हैं… यह मंच हम सबको अपने विचार सार्वजानिक रूप से सम्पूर्ण विश्व, सम्पूर्ण समाज के सामने व्यक्त करने हेतु सौभाग्य से प्राप्त हुआ है… और जब हम सार्वजानिक रूप से कोई बात कहते हैं… या अपना विचार समाज के मध्य प्रस्तुत करते हैं… तो एक लेखक के रूप में हमारे कुछ कर्तव्य और कुछ जिम्मेदारियां भी होनी चाहिए…

मात्र विचार व्यक्त कर देना ही ब्लॉग्गिंग या साहित्य लेखन नहीं है… आप क्या सन्देश दे रहे हैं यह महत्वपूर्ण है… कुछ पोस्ट पर जब मैंने यह प्रश्न उठाया तो उस पोस्ट के लेखक ने यह उत्तर दिया की यह मेरी राय है…और कई जगह कुतर्कों द्वारा स्वयं को सही ठहराने की कोशिश की गयी… लेकिन यह गैर जिम्मेदाराना वक्तव्य है… और एक ब्लॉगर को यह उत्तर शोभा नहीं देता… अगर किसी की राय में ह्त्या उचित है तो क्या इस स्थिति में आप उसकी इस राय का समर्थन करेंगे? लेकिन इस मंच पर अनेक बार कुंठित विचारों से भरे पोस्ट लिखे गए … और मजे की बात तो यह है की इन पोस्ट पर अनेक ब्लागरों द्वारा (जिनमे प्रतिष्ठित ब्लॉगर शामिल हैं) सकारात्मक टिपण्णी दी गयी है… ये प्रतिक्रियाएं मात्र औपचारिकताएं हैं… और इस तरह गैरजिम्मेदाराना भी हैं. अगर आज इस बात पर हम विचार नहीं करेंगे … तो हम इसकी कीमत चुकाने की सामर्थ्य भी खो बैठेंगें.

एक विख्यात लेखक आल्विन कर्नान ने अपनी पुस्तक – द डैथ आफ लिटरेचर – में लिखा है – लोकप्रिय कल्चर और उपभोक्तावाद साहित्य को जकड रहा है. मॉस कल्चर ने एक विषम स्थिति पैदा कर दी है. कला ही नहीं, साहित्य की भी यही स्थिति है और उसकी मृत्यु की घोषणा की जा चुकी है. अब आप विचार करें की क्या सच में साहित्य की मृत्यु हो चुकी है?… क्या मानव जीवन को अर्थ देने वाले शब्दों के अर्थ समाप्त हो चुके हैं?..कहा गया है कि – तलवार से बड़ी ताक़त कलम में होती है – तो क्या आज वह कलम कमजोर पड़ गयी है?… जहाँ न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि… क्या यह पंक्ति निरर्थक हो गयी है?… क्या समाज को जगाने वाली शक्ति खुद मौत कि नींद सोने को आतुर है?… इस मंच के सभी पाठकों और लेखकों से इन प्रश्नों के उत्तर अपेक्षित हैं…. इन प्रश्नों को आप अनसुना नहीं कर सकते हैं…

आधुनिक तकनीक के चलते साहित्य का स्वरुप बदल रहा है… और प्रतिस्पर्धा हावी हो रही है… इस प्रतियोगिता के दौरान यही सब देखने को मिला… और तथाकथित प्रतिष्ठित ब्लोग्गेर्स कि कलई भी खुली क्यूंकि उनके लेखन का उद्देश्य हम सबके सामने जो आ गया. इस प्रतियोगिता में ऐसा मनोरंजन देखने को मिला जो मन रंजित नहीं.. विकृत ही कर डाले… सात्विक, सुरुचिपूर्ण न होकर अश्लील, कुत्सित और भौंडी प्रकृति का लेखन देखने को मिला… ऐसा लेखन देख कर अकबर इलाहाबादी का यह शेर याद आता है……

बेपर्दा देखीं आज मैंने चंद बीबीयाँ
अकबर ज़मीं में ग़ैरते कौमी से गड़ गया
पूछा मैंने उन्हीं से अरे वो पर्दा कहाँ गया
कहने लगी अक्ल पे लोगों के पड़ गया

आज के लेखक तथाकथित आधुनिकता का कवच ओढ़कर निम्न और वासनात्मक प्रवृत्तियों को बल दे रहे हैं… जो जितना विकृत है वह उतना ही आधुनिक है… इसके उलट सुसंस्कृत होना पिछड़ेपन की निशानी है… संस्कृति पोषक, मूल्य संवर्धक तथा समाज एवं राष्ट्र को दिशा देने वाला लेखन तो कहीं कहीं ही मिलता है… और जहाँ कहीं मिलता है… उसे किताबी बातें आदि उपमाओं से संबोधित कर ख़ारिज कर दिया जाता है… इस तरह का मत रखने वाले शायद मुंशी प्रेम चंद की इन पंक्तियों से वाकिफ नहीं हैं – यदि साहित्य का काम केवल मन बहलाव का सामान जुटाना, केवल लोरियां गा कर सुलाना या केवल आंसू बहा कर जी हल्का करना है, तो इसके लिए विद्वानों की आवश्यकता नहीं है….. हम साहित्य को केवल मनोरंजन और विलासिता की वस्तु नहीं समझते… हमारी कसौटी पर वाही साहित्य खरा उतरेगा, जिसमे उच्च चिंतन हो, स्वाधीनता का भाव हो, सौन्दर्य का सार हो, सृजन की आत्मा हो, जीवन की सच्चाइयों का प्रकाश हो, जो हम्मे गति और बैचेनी उत्पन्न करे… सुलाए नहीं, क्यूंकि अब और ज्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है. – ये कोरे शब्द नहीं है…की जिनको यथार्थ के धरातल पर ना उतारा जा सके… ये किताबी बाते नहीं हैं… अगर आपको ये किताबी लगती हों तो दोष आपका है… क्यूंकि किताब पर लिखी गयी ये इबारतें किसी की सोच और चिंतन का परिणाम ही हैं… ये किसी के जीवन के अनुभव का नतीजा हैं…. हाँ यह जरुर हो सकता है की हमने जीवन के इस पहलु को कभी अनुभव ही न किया हो… तो यह दोष तो हमारा ही है.

कहने वाला कह गया दो हिचकियों में राज ए दिल
लोग पीछे मुद्दतों तक गुफ्तगू करते रहे.

लेखन दलाली के गर्त में धंस रहा है… लेखन नाम और शोहरत के लिए हो रहा है… लेखन समाज के लिए नहीं अपितु टी. आर.पी. के लिए हो रहा है… यह जागरण जंक्शन के इस मंच पर साफ़ साफ़ दृष्टिगोचर हो रहा है… आप इसकी बानगी फीडबैक में और विभिन्न लेखों और उन पर दी जा रही प्रतिक्रियाओं को पढ़कर अनुभव कर सकते हैं…. सारी होड़ फीचर्ड, चर्चित, अधिमुल्यित और अधिपठित ब्लॉग को लेकर है… ठीक है यह भी लेखक की चाह हो सकती है और ऐसा होना बुरा नहीं है… लेकिन यह सब करने के लिए लेखन के साथ समझौता करना… गलत सन्देश देते लेखों से सहमति जताना… भौंडे शीर्षकों का प्रयोग करना और वैर की भावना रखना कहाँ तक उचित कहा जा सकता है…. इस विषय पर आप सभी गणमान्य लेखकों से सहयोग अपेक्षित है.

साहित्य का अर्थ है…. जो हित में हो… साहित्य को हितकारी कैसे बनाया जाये?…. महर्षि अरविन्द का एक कथन है – भारत की दुर्बलता का कारण चिंतन शक्ति का ह्रास है… ज्ञान की भूमि में अज्ञानता का विस्तार है. – इस अज्ञान के कारण ही साहित्यकार स्वार्थ .. लोभ और भय के अन्धकार में फंस जाता है… विवेक का आभाव उसे संकीर्णताओं में बांधता है… और आत्मा की सुषुप्ति ही साहित्य की मौत का कारण है… इसलिए साहित्य को यदि पुनः जाग्रत करना है तो साहित्यकार की आत्मा को जीवित करना होगा… लेखनी को रचनात्मक और सकारात्मक करना है तो लेखक को ज्ञानी होना होगा… साहित्यकारों को अपनी गलत महत्वाकांक्षाओं की बलि देनी होगी तभी वह शब्दों के प्रकाश से समाज के अंधकारों को दूर कर पाने में समर्थ हो पायेगा.

जागरण जंक्शन और इस मंच पर उपस्थित सभी ब्लोगरों से मेरा एक अनुरोध है की मृतप्राय हो रहे साहित्य को जीवित करने की एक मुहीम हम सब प्रारम्भ करें… और निस्स्वार्थ और उद्देश्यपूर्ण लेखन के द्वारा इस उद्देश्य की प्राप्ति संभव है… अंत में श्रेष्ठ साहित्यकारों के सम्मान में ये पंक्तियाँ….

मौत उनकी है जिनको करे ज़माना याद
यूँ तो आते हैं सब यहाँ मरने के लिए.

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