वैलेंटाईन डे के विरोधियों का कहना है कि वैलेंटाईन डे बहुराष्ट्रीय कंपनियों का माल बेचने के प्रोपगंडा के सिवा कुछ नहीं है….. उनका यह भी कहना है कि जब जीवन की सबसे अनिवार्य आवश्यकता प्रेम है….. तो फिर क्या प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए एक ही दिन मुक़र्रर होना चाहिए? क्या भारत में इस तथाकथित “त्यौहार” के आगमन से पहले युवक-युवतियां प्रेम नहीं करते थे? क्या मीडिया का दुष्प्रचार इसे सिर्फ युवक – युवतियों के यौनाचार के रूप में पेश नहीं करता? क्या टेलीविजन पर वैलेंटाईन डे का यह भौंडा दुष्प्रचार मासूम बच्चों से उनका बचपन छीनकर उन्हें समय से पहले यौन जिज्ञासाओं और कुचेष्टाओं की ओर नहीं धकेल रहा? यदि इन प्रश्नों का उत्तर “हाँ” है तो यह पर्व नहीं बल्कि सामाजिक विद्रूपता फैलाने का सिर्फ एक कुत्सित प्रयास है जिससे फ़ायदा सिर्फ बहुराष्ट्रीय कंपनियों को होने वाला है जबकि इसके दुष्परिणाम पूरे देश और समाज को भुगतने पड़ेंगे.
प्रिय पाठकों ”वेलेंटाइन डे” का नाम सुनते ही इसके विरोधियों के मन में इस त्यौहार की असहज छवि उभरती है…… प्रेम की यह छवि कब और कैसे उभरी यह कोई नहीं सोचता….. क्योंकि आज के इस युग में जब हम कोई धारणा बनाते हैं…. तो उस समस्या या मुद्दे की तह में जाने की कोशिश ही नहीं करते हैं….. जिसके सन्दर्भ में हम यह धारणा बनाते हैं…. प्रेम तो जीवन की शाश्वत्ता है…. प्रेम के बगैर सभ्य समाज की कल्पना करना बेमानी है…. फिर भी प्रेम को लेकर या सही मायनो में कहा जाये तो इसके स्वरूप को लेकर हमारे देश में एक बहस छिड़ गई है…. लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है…. कारण यह है की हम या तो पक्ष में होते हैं या विपक्ष में और कमी रहती है एक सार्थक बहस की…. सार्थक बहस ही हमें सही निर्णय या समाधान की और ले जाती है…. अतः जरुरत है एक खुली सार्थक बहस की…. लड़ाई झगडे से काम चलने वाला नहीं है.
प्रेम किसी से भी…. कभी भी…. शरीरी और अशरीरी….. भी हो सकता है…. आध्यात्मिक हो सकता है….. ईश्वर से हो सकता है. न जाने हम क्यों प्रेम को किसी रिश्ते से जोड़ देते हैं…. प्रेम को किसी रिश्ते से जोड़ने का हीं परिणाम है कि प्रेम का वर्तमान स्वरूप …. आज प्रेम का रिश्ता चारित्रिक पतन का स्वरूप बन गया है….. प्रेम को शरीर के इर्द गिर्द ही सीमित कर दिया गया है.
कोई भी गैर भारतीय परंपरा हो…. हम सभी पाश्चात्य संस्कृति को दोष दे देते हैं…. जबकि ख़ुद की गलती नहीं समझते….असल में हम गैर भारतीय परम्पराओं को ठीक से नहीं समझ पाते और जब स्थिति हमारे हाथ से बाहर हो जाती फिर हम उस संस्कृति पर दोष मढ़ देते हैं….
पाश्चात्य संस्कृति में तो प्रेम केलिए मात्र एक दिन माना गया है जबकि हमारी संस्कृति में सावन का पूरा महीना प्रेम को समर्पित है…. भारतीय संस्कृति में प्रेम जीवन का अहम् हिस्सा रहा है…. शिव को पाने के लिए पार्वती ने कठोर तपस्या की थी…. राधा-कृष्ण का प्रेम तो अमर है…. प्रेम की जब भी बात होगी कृष्ण और मीरा का नाम तो लिया ही जायेगा…. फाल्गुन महीने में आने वाला त्यौहार होली को रंग के साथ हीं प्रेम का त्यौहार भी माना जाता है…. प्रेम हमारी संस्कृति में घुला है…. कृष्ण और गोपियों की रास-लीला आप सभी जानते ही हैं….
असल बात यह है कि किसी भी बात की अति हो या उस पर पाबंदी हो तो उसमे विकृति आ ही जाती है…. वेलेंटाइन डे भारत में बढ़ते शहरीकरण और वैश्वीकरण के कारण आज घर घर में पहुँच गया है…. आज वेलेंटाइन डे पर न सिर्फ विवाद छिड़ गया है…. यह हिंसात्मक हो चूका है…. एक पक्ष प्रेम को जीवित रखने के लिए उस संत की याद में इस एक दिन को जीता है तो दूसरा पक्ष अतार्किक बहस छेड़ इस दिन को जश्न के रूप में मनाने वालो का उत्पीड़न करता है…. प्रेम के लिए अब किसी के पास न तो समय है और न सोच का विस्तृत दायरा….. अब न फाल्गुन महीने का वो खुमार छाता है न सावन महीने में प्रिय से मिलन की व्याकुलता…. जीवन का हर आयाम सिमट कर सिमट कर रह गया है….
अब अगर एक दिन प्रेम को समर्पित कर दिया जाये तो जीवन में एक दिन तो उल्लास जरुर छाता है…. दोस्तों जीवन का होना और मिटना महज क्षण भर की बात है….. तो क्यों न प्रेम से भरा जीवन जिया जाये और एक दिन क्यों हर दिन वेलेंटाइन डे मनाया जाये….. अगर वेलेंटाइन संत विदेशी थे और शायद यही समस्या है तो अपनी संस्कृति और परंपरा को मान कर निभाते हुए पूरा साल प्रेम को समर्पित कर दें….
लेकिन हाँ अगर आप विरोधियों कि बातों को देखे तो कुछ बातें जायज़ भी लगती हैं…. मसलन अश्लीलता…. भौंडापन…. भौंडा दुष्प्रचार…. प्रेम नहीं महज यौनाचार …. आदि …. इन पर भी ध्यान देने कि आवश्यकता है महज एक पक्ष में बैठने से नहीं चलेगा…..
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