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सच्ची चाहत तो सदा बेजुबान होती है…. (मौन : प्रेम की भाषा)

Solutions for Life (जीवन संजीवनी)
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सभी पाठकों को मेरा प्रेम भरा प्रणाम…. दोस्तों एक बार पुनः मै प्रेम के सम्बन्ध में दो शब्द लेकर आप सभी पाठक गणों के मध्य उपस्थित हूँ और आशा करता हूँ कि पूर्व में जिस प्रकार आप सभी लोगों का स्नेह एवं प्रेम मुझे प्राप्त हुआ है वही स्नेह एवं प्रेम मुझे निरंतर प्राप्त होता रहेगा…. उम्मीद है पूर्व कि भांति आप सभी पाठक गण मुझे अपनी प्रतिक्रियाओं से लेख के विषय में अवगत करते रहेंगे जिससे मै अपनी लेखन शैली में सकारात्मक सुधर करने में सक्षम हो सकूँ…..


दोस्तों मै प्रेम के विषय में इससे पूर्व दो लेख प्रस्तुत कर चूका हूँ लेकिन अभी भी ऐसा महसूस हो रहा है कि प्रेम के संबंध में बहुत कुछ लिखा जाना शेष है….. अभी भी प्रतीत होता है कि बहुत कुछ है जो अनकहा रह गया है…… मेरा तो मानना है कि जब तक पृथ्वी पर मानव का वजूद है तब तक प्रेम का अस्तित्व है….. जीवन के किसी भी स्तर पर प्रेम की आवश्यकता एवं उसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता.

प्रेम के संदर्भ में आज तक कोई सार्वभौमिक या सर्वमान्य परिभाषा नहीं लिखी जा सकी है……. कारण प्रेम को शब्दों या भाषा में बांधना असंभव है…. प्रेम असीम है यही असीमता का गुण उसे कहीं बंधने नहीं देता चाहे वो शब्द हों या भाषा….. यही कारण है कि प्रेम को अभिव्यक्त करने की सर्वोत्तम भाषा मौन है…… प्रेम मानव मन का भाव है….. एक ऐसा भाव जो कहा या सुना नहीं अपितु समझा जा सकता है….. महसूस किया जा सकता है….. प्रेम ही मानव जीवन की नींव है….. प्रेम ही हमारे सार्थक एवं सुखमय जीवन का आधार है…. प्रेम को परिभाषित करना असम्भव है.


प्रेम कि परिभाषा वहां से आरम्भ होती है जहाँ समस्त शब्द अर्थहीन हो जाते हैं…. वहीँ अंकुरित होता है प्रेम का बीज…. प्रेम की शब्दों से व्याख्या करना संभव नहीं है…. प्रेम एक मधुर अहसास है…. प्रेम एक सुखद अनुभूति है…. प्रेम का नशा आप अनुभव तो कर सकते हैं लेकिन इस नशे को शब्द रूप देना असंभव है… प्रेम का उन्माद अवर्णनीय है…. प्रेम को हम शब्द रूप देने की कोशिश तो करते हैं…. लेकिन ऐसा करने में हम उसे सीमित कर देते हैं…. जबकि प्रेम तो असीम है…. सर्वत्र है…. यही कारण है कि प्रेम कि भाषा मौन है.

प्रेम एक पवित्र भाव है जो जन्म लेता है हमारी आत्मा में….. ह्रदय की भावनाओं को तो हम व्यक्त कर सकते हैं किंतु यदि हमारे हृदय में किसी के प्रति प्रेम है तो इसकी अभिव्यक्ति नहीं की जा सकती….. कारण प्रेम एक अहसास है जो बेजुबान है. इस सम्बन्ध में किसी शायर की कही चंद पंक्तियाँ याद आ रही हैं …. आप सबके अवलोकनार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ….

आँख तो प्यार में दिल की जुबान होती है….

सच्ची चाहत तो सदा बेजुबान होती है….

प्यार में दर्द भी मिले तो कैसा घबराना….

सुना है दर्द से चाहत जवान होती है….


प्रेम में अदम्य ताकत है…. प्यार की बेजुबान बोली तो जानवर भी समझ लेते हैं…. जिसे प्यार की दौलत मिल जाए उसका तो जीवन के प्रति नजरिया ही बदल जाता है…. प्रेम से भरे व्यक्ति को सारी सृष्टि बेहद खूबसूरत नजर आने लगती है….. प्रेम के अनगिनत रूप हमारे सामने बिखरे पड़े हैं…. यह तो हमारी दृष्टि है…. जो उन्हें देख पाती है अथवा नहीं…. प्रेम ही हमारे जीवन की आधारशिला है.

जहाँ प्रेम है…. वहाँ समर्पण है… जहाँ समर्पण है… वहीँ श्रद्धा है…. जिस प्रकार जिंदा रहने के लिए श्वास जरुरी है…. उसी तरह जीवन के लिए प्रेम आवश्यक है…. सच्चा एवं परिपक्व प्रेम वह है…. जो कि अपने प्रिय के साथ हर कदम साथ रहता है और अहसास कराता है कि मैं हर हाल में तुम्हारे साथ…. तुम्हारे लिए हूँ. प्रेम की व्याख्या हर व्यक्ति अपने तरीके से करेगा…. लेकिन प्रेम … प्रेम ही रहेगा.

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