प्रिय पाठकों एक बार फिर मै आपके समक्ष जागरण जंक्शन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता के क्रम में प्रेम पर एक नया पोस्ट प्रस्तुत कर रहा हूँ. यह मेरा सौभाग्य है की जिस समय जागरण जंक्शन द्वारा यह प्रतियोगिता प्रारंभ की गयी उसी समय से मेरा अवकाश प्रारंभ हुआ है. इस सौभाग्य के कारण मै आप सभी के मध्य इस प्रतियोगिता के विषय प्रेम पर अपने विचारों को प्रकट कर पाने में समर्थ हुआ हूँ. आशा करता हूँ कि आप सभी पाठक गण पूर्व की भांति ही मेरे इस पोस्ट को पढ़ कर अपनी प्रतिक्रियाओं से मुझे अवश्य अवगत करायेंगें.
सेंट ऑगस्टाइन का एक कथन है…… प्यार से हमेशा कोसों दूर रहने से अच्छा है, प्यार करके तबाह हो जाना……….
सेंट वेलेंटाइन को प्रेम के कारण ही मौत कि सजा मिली थी…. श्री श्री रविशंकर जी का कहना है…… अपने में ईश्वर को देखना ध्यान है, दूसरे में ईश्वर को देखना प्रेम है, सर्वत्र ईश्वर को देखना ज्ञान है. प्रेम को कभी भी जाना नहीं जा सकता क्योकि प्रेम ही ईश्वर है और ईश्वर अनंत है…. और जानने का अर्थ है किसी विषय को मन की सीमा में लाना और जैसे ही हम अनंत को इस सीमा में लाने की कोशिश करते हैं उसका अनंत खत्म हो जाता है……. इस प्रकार प्रेम को जाना नहीं जा सकता हाँ इसे अनुभव जरुर किया जा सकता है और यही अनुभव हमें ईश्वर दर्शन कराता है…… यदि आप किसी से प्रेम करते हैं तो मुक्ति के लिए और कुछ करने कि आवश्यकता नहीं….. यही प्रेम आपको मुक्त करा देगा…. यही है…. वास्तविक प्रेम ……इसी प्रकार यदि हमें वास्तव में ईश्वर से प्रेम है तो हमें उससे मिलने के लिए कोई प्रयत्न करने जरुरत नहीं…. हम उसी क्षण मुक्त हो जाएगे.
आज हमने प्रेम प्यार शब्द को खो दिया है….. आजकल किसी से जब प्रेम की बात करो तो उसका अर्थ वासना से लगा लिया जाता है….. प्रेम को अपेक्षा से जोड़ कर देखा जाता है…..प्रेम वस्तुतः भक्ति का ही दूसरा नाम है…. प्रेम के बिना भक्ति नहीं और भक्ति के बिना प्रेम नहीं हो सकता… प्रेम के लिए जरुरी है परमात्मा का नाम और उसके प्रति समर्पण……..और साथ ही जरुरी है सत्संग अर्थात प्रेम कि चर्चा. मीरा ने कहा था – असाधुओं की संगति में नाम होने से तो साधु संगति में बदनाम हो जाना अच्छा…….प्रेम प्रार्थना का प्रथम रूप है…… प्रेम परमात्मा की शिक्षा है.
अगर तुम्हारे पास प्यार है, तो फिर किसी और चीज की जरूरत नहीं और अगर प्यार नहीं है, तो फिर किसी भी चीज के होने का कोई मतलब नहीं – जेम्स एम. बैरी का यह कथन प्रेम को समझने के लिए पर्याप्त है…..प्रेम स्वयं साधन भी है और साध्य भी…. उसी को सब कुछ मिलता है जिसे कुछ नहीं चाहिए, और ये कुछ नहीं चाहना ही ईश्वर को चाहना है….. प्रेम को परिभाषा या शब्दों में बांधना नामुमकिन है….. किन्तु यह तो कहा ही जा सकता है कि प्रेम ज्ञान से ऊपर है.
प्यार……..ढाई अक्षर का छोटा-सा शब्द …… न जाने कितने सारे अर्थ समेटे हुए है…….इस छोटे से शब्द की व्याख्या के संबंध में न जाने कितने ही कवियों… साहित्यकारों …… संत-महात्माओं द्वारा इतना कुछ कहा एवं लिखा जा चुका है कि अब कुछ और कहे या लिखे जाने की कोई गुंजाइश नजर नहीं आती……. फिर भी इसके महत्व एवं अस्तित्व के विषय में लिखे जाने का सिलसिला अनवरत जारी है…. और अनंत तक जारी रहेगा…… प्रेम कि यह बानगी देख कर सेंट ऑगस्टाइन का यह कथन…… प्यार से हमेशा कोसों दूर रहने से अच्छा है, प्यार करके तबाह हो जाना…… सत्य ही प्रतीत होता है.
अंत में कहीं पढ़ी हुई ये चंद पंक्तियाँ आप सबके अवलोकनार्थ प्रस्तुत हैं……
ये मुहब्बत कि बाते हैं उद्धव , बंदगी अपने वश कि नहीं हैं
यहाँ सर देकर होते हैं सौदे आशिकी इतनी सस्ती नहीं हैं
प्रेम वालो ने कब किससे पूछा , किसको पूछू बता मेरे उद्धव
यहाँ दम दम पर होते हैं सिजदे , सर उठाने को फुर्सत नहीं हैं
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