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कहाँ है शान्ति ?

Solutions for Life (जीवन संजीवनी)
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विश्व विजेता बनने कि मंशा से सिकंदर अबाध गति से बढ़ा चला जा रहा था…… एक बार राह में उसकी मुलाकात संत डायोजनीज से हुई …. संत ने प्रश्न किया…… सिकंदर…. अब क्या इरादा है तेरा ?…. क्या आकांक्षा रखता है तू ?….. सिकंदर बेबाक अंदाज में बोला….. पहले मै एशिया माइनर को जीतूंगा….. फिर हिन्दुस्तान को…. और उसके उपरांत सारे विश्व पर आधिपत्य हासिल करने हेतु आगे बढूँगा …. यह सुन कर डायोजनीज ने बड़ी भेदपूर्ण मुस्कान दी और फिर पूछा….. और उसके बाद ? विश्व का अधिकार पाने के बाद तू क्या करेगा ?….. सिकंदर ने कहा…. उसके बाद क्या ? उसके बाद तो मै शांति से रहूँगा….

डायोजनीज जोरदार अट्टाहास कर उठे…. उनके पास एक कुत्ता बैठा था… उसे सहलाते हुए वे बोले…. देख इस पागल सिकंदर को….. यह शांति पाने के लिए उपद्रव मचाने जा रहा है….. घोर अशांति फ़ैलाने की ठान चूका है…. भला अशांति देकर क्या कभी किसी को शांति मिली है ? और इधर मै सभी साम्राज्यों से बाहर , एक निर्जन वन में, इस मिटटी की धेली पर बैठ कर भी शांत हूँ… आनंद में हूँ.

प्रिय पाठकों अब आप ही बताइए क्या सिकंदर को शांति मिली? शांति हम कैसे प्राप्त कर सकते हैं? क्या महत्वाकांक्षा शांति की विरोधी है? इस मुद्दे पर आप सभी के विचार आमंत्रित है…..

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