हम रोज एक आरती पढ़ते हैं…….. ॐ जय जगदीश हरे…… लेकिन बहुत कम लोग हैं जो उसके भावार्थ से परिचित हैं……. इस आरती में एक पंक्ति है……
तेरा तुझको अर्पण, क्या लगे मेरा
……. इस पंक्ति के भावार्थ को स्पष्ट करने के लिए मै आपको एक कहानी सुनाता हूँ…
एक बार एक व्यक्ति समुद्र में रास्ता भटक गया और एक विचित्र द्वीप पर पहुँच गया. बहुत दिनों तक वह अपने देश वापिस लौटने का प्रयास करता रहा….. पर सब विफल हो गया. द्वीपवासियों ने उसे सुझाव दिया की वह एक नयी शुरुआत करे. वह द्वीप के धनी व्यक्ति के पास जाये….. वह हर जरूरतमंद को धन उधार दिया करता है…… वह भी बिना किसी शर्त के…. और बिना किसी ब्याज के. जब कर्जदारों की माली हालत ठीक हो जाती है तो वे उसके धन को वापस कर देते हैं. इस व्यक्ति को यह बात जँच गयी.
अगले दिन सुबह वह उस धनी व्यक्ति के पास जाने के लिए निकल पड़ा….. रास्ते में एक स्थान पर उसने बहुत भीड़ देखी…… पास जाने पर पता चला की एक जवान लड़के की मौत हो गयी है. उसके माता पिता भाई बहन पत्नी सब वहां पर मौजूद थे…. पर हैरानी की बात यह थी की कोई भी दुःख से रो नहीं रहा था….. ऐसा लग रहा था जैसे उनको उसके मरने का गम ही नहीं था.
उसे बहुत हैरानी हुई ….. खैर वह वहां से चल दिया और धनी व्यक्ति के घर पहुँच कर उसने अपनी आपबीती सुनाई तथा धन की मांग की. धनी व्यक्ति बोला मै आपकी पूरी मदद करूंगा…… चलिए आप पहले कुछ चाय नाश्ता कर लीजिये. नाश्ता करते हुए वह व्यक्ति धनी सेठ से बोला……. सेठ जी आपका द्वीप अच्छा नहीं है…… फिर उसने रास्ते में हुई घटना सुनाई.
उस व्यक्ति की बात सुनकर सेठ एकदम से बोला…… मुझे क्षमा करे मै आपको धन उधार नहीं दे पाऊँगा……. आप वापिस लौट जाएँ. वह व्यक्ति हैरान हुआ और उसने निर्णय बदलने का कारण पूछा.
धनी सेठ ने कहा ……. जो व्यक्ति ईश्वर को उसकी भेंट लौटाने में दुखी है वह मेरा धन कैसे लौटाएगा. उस व्यक्ति ने पूछा …… मतलब …. सेठ ने कहा साफ़ सी बात है हम सभी जानते हैं की बच्चा ईश्वर की देन होता है ….. माता पिता को तो बच्चे को ईश्वर की अमानत समझ कर उसका लालन पोषण करना होता है ….. इसलिए ईश्वर जो देता है उसे लेने का उसे पूरा अधिकार है …… लेकिन जब ईश्वर अपनी वस्तु को वापस ले ले तो दुखी होना ठीक बात नहीं है. अतः जब आपको यह बात ठीक नहीं लग रही तो कल आपको मेरा धन लौटना भी ठीक नहीं लगेगा ….. इसलिए मै आपको धन उधार नहीं दे सकता हूँ …
पाठकों इस कहानी का सार यही है कि संसार की किसी भी वस्तु पर आसक्त मत होइए ….. सब कुछ ईश्वर की देन समझ कर निरासक्त भाव से भोगिये …. आनंद उठाइए इस जीवन के प्रसाद का और अर्पित कर दीजिये सब कुछ उस परम ईश्वर को. ………. तेरा तुझको अर्पण…..क्या लगे मेरा……. यही सार है जीवन का.
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