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कितने बेबस हैं हम.

Solutions for Life (जीवन संजीवनी)
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कपकोट, बागेश्वर : एक दर्दनाक हादसा
                          दिनांक १८ अगस्त २०१० : जब सारा भारतवर्ष रक्षाबंधन एवं रमजान के त्योहारों के माहोल मे डूबा है तब उत्तराखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्र में बादल फटने से १८ छोटे छोटे बच्चों की मृत्यु की खबर दिल को झकझोर के रख देती है. शायद ही कोई ऐसा निर्मम ह्रदय होगा जो इस करूँ त्रासदी को सुन कर या टी.वी. पर देख कर रोया नहीं होगा. उत्तराखंड के बागेश्वर जिले की कपकोट तहसील के सुदूरवर्ती गावं तप्तकुंड मे जब बच्चे एक विद्यालय में पढाई कर रहे थे तभी अचानक बादल फटने से हुई भरी वर्षा के कारण अचानक मलबा आने से यह हादसा घटित हुआ. इस घटना का सबसे दर्दनाक पहलू यह है कि हादसे में मारे गए अधिकतर बच्चे ५ वर्ष या इससे कम आयु के थे. बड़ी क्लास के बच्चे एवं टीचर तो जान बचाने में सफल हो गए लेकिन मारे गए बच्चे इतने मासूम थे कि वे समझ ही नहीं पाए कि क्या घटने वाला है. इस घटना के बाद स्कूल के टीचर भी बच्चों को ना बचा पाने के अफ़सोस में फफक फफक के रो पड़े. यूँ तो उत्तराखंड में अनेक प्राकृतिक आपदाओं का इतिहास रहा है और उत्तराखंड के वासियों ने अनेक आपदाओं का साहस के साथ सामना किया है लेकिन इस घटना ने ह्रदय पर जो आघात किया है उसे शब्दों में व्यक्त करना मेरे लिए असंभव है.
                        बच्चों को ना बचा पाने कि जो बेबसी टीचरों के रोने से झलक रही थी वही बेबसी कहीं ना कहीं हमारे अन्दर भी झलकती है. प्रकृति के आगे हमारी बेबसी का उदाहरण है यह घटना, लेह के हादसे के बाद यह हादसा एक सबक है हम सब के लिए कि हम प्रकृति के साथ जो भी कर रहे हैं उसे ना कर प्रकृति की IMPORTANCE को SAMJHE .

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